गमत” लोककला को पुनर्जीवित करने हेतु 11 अक्टूबर को देहरादून में विशेष कार्यक्रम

देवेश आदमी

उत्तराखण्ड की विश्वविख्यात, किंतु आज विलुप्ति के कगार पर पहुँची लोकसांस्कृतिक विधा “गमत” को बचाने और इसके पुनर्जीवन हेतु गौ गुठ्यार टीम, उत्तराखण्ड ने सामाजिक अपील जारी की है।

गौ गुठ्यार टीम के संस्थापक किशना बगोट व देवेश आदमी ने बताया कि 11 अक्टूबर 2025 (शनिवार) अपराह्न 4 बजे प्रेक्षा गृह, संस्कृति भवन, देहरादून में एक विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इस कार्यक्रम में “गमत” के शेष 12 कलाकार प्रस्तुति देंगे और लोकजनों को इस विधा को बचाने हेतु जोड़ने का आह्वान करेंगे। गौरतलब हो कि यह विधा अब बिलुप्त होने के कगार पर हैं इस विधा के मात्र अब 12 कलाकार ही मौजूद हैं. देश विदेश तक कभी इस कला की छाप थी जो पलायन व जाति सूचक होने के कारण अंतिम साँसे गिन रहा हैं.
टीम ने कहा कि “गमत” केवल गीत-नृत्य भर नहीं है, बल्कि यह संवाद, व्यंग्य और समाजोपदेश की अद्वितीय कला है। विवाह-मण्डप से लेकर ग्रामसभा और मेले-ठेले तक, यह विधा कभी उत्तराखण्ड के जनजीवन की आत्मा रही। 90 के दशक तक एक विधा की पहाड़ों में अनेकों टोलियाँ मौजूद थी मगर वर्तमान में मात्र 12 लोग ही एक का बोझ ढो रहे हैं यूँ कहे कि आज यह संगीत हाँस्य नाटक की मौखिक परंपरा लगभग समाप्ति पर है, और अब केवल 12 कलाकार ही जीवित परंपरा को निभा रहे हैं जिन की आर्थिक समाजिक स्थिति शून्य हैं.
गौ गुठ्यार टीम के अध्यक्षा किशना बगोट का मानना है कि कलाकारों को आर्थिक संबल, सामाजिक मंच और वैचारिक सहारा दिए बिना यह अमूल्य धरोहर विलुप्त हो जाएगी।
टीम ने आमजन से अपील की है कि वे इस मुहिम का हिस्सा बनें और गमत विधा को फिर से गाँव-गाँव और पीढ़ी-दर-पीढ़ी तक पहुँचाने में सहयोग दें।
गौ गुठ्यार टीम के अन्य सदस्य देवेश आदमी का कहना है “गमत को बचाना अर्थात लोक की आत्मा को बचाना है। यह हमारी मिट्टी की सुगंध और हमारे पुरखों की अमूल्य धरोहर है।” जिस तरह से शरीर आत्मा के बिना शून्य हैं उसी तरह उत्तराखण्ड गमत के बिना मात्र एक भूभाग हैं पहाड़ों की आत्म हैं “गमत” हमारा प्रयास सिर्फ कला संरक्षण ही नहीं कलाकारों की अजीविका सुनिश्चित करना भी हैं हम चाहते हैं कि कला व कलाकार पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रहे…