उत्तराखंड की तीन हस्तियाँ पद्म श्री से हुईं सम्मानित
राधा भट्ट को सामाजिक कार्य के लिए भारत की राष्ट्रपति ने किया पद्मश्री से सम्मानित

ह्यूग गैंट्ज़र और श्रीमती कोलीन गैंट्ज़र (मरणोपरांत) को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री से किया सम्मानित

भारत की राष्ट्रपति ने आज नई दिल्ली में आयोजित नागरिक अलंकरण समारोह में उत्तराखंड की राधा भट्ट को सामाजिक कार्य, श्री ह्यूग गैंट्ज़र और श्रीमती कोलीन गैंट्ज़र (मरणोपरांत) को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया।

पदमश्री से सम्मानित होने वाली सुश्री राधा भट्ट उत्तराखंड की एक प्रसिद्ध समाज सेविका हैं। 16 अक्टूबर 1933 को उत्तराखंड के एक सुदूर इलाके में जन्मी, सुश्री भट्ट को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए और अधिक प्रयास करने पड़े क्योंकि वहां शिक्षा, विषेश रूप से लड़कियों के लिए शिक्षा के बारे में कोई जागरूकता नहीं थी तथा गांव में शिक्षा की कोई सुविधा नहीं थी। किशोरावस्था में ही उन्होंने खास तौर पर महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा देने और उनमें आत्मविश्वास पैदा करके उनकी मदद और विकास हेतु समाज सेविका बनने का निर्णय लिया। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने 12वीं की पढ़ाई छोड़ दी और 16 साल की उम्र में सरला बेन के संस्थान/आश्रम में शामिल हो गईं। जब वह सिर्फ 16 साल की थीं, तब उन्होंने लक्ष्मी आश्रम में प्रवेश लिया। सुश्री भट्ट उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं और बच्चों की सेवा करती रही हैं। उन्होंने वर्ष 1961-1963 के दौरान पिथौरागढ़ जिले के बौगाड़ गांव में गांधीवादी आदर्शों और तकनीकों पर आधारित समाज सेवा के प्रचार-प्रसार का एक प्रयोग किया। उन्होंने किशोरों के लिए छोटे-छोटे संगठन (मंडल) स्थापित किए, लड़कियों के लिए ‘एक घंटे का स्कूल’ और सभी उम्र के बच्चों के लिए व्यक्तित्व विकास संबंधी गतिविधियाँ आयोजित कीं। उन्होंने महिलाओं को अपने जंगलों के संरक्षण हेतु काम करने के लिए प्रेरित किया और विकास के सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रमों को चलाने के लिए बेरीनाग ग्राम स्वराज्य मंडल की स्थापना की। यह मंडल आज भी सक्रिय है और इसने खादी और ग्रामोद्योग के विकास और पर्यावरण संरक्षण में बड़े पैमाने पर योगदान दिया है। सुश्री भट्ट ने स्कूली शिक्षा के उन्नत तरीकों में प्रशिक्षण के लिए डेनमार्क और अन्य स्कैंडिनेवियाई देशों का दौरा किया। अपनी वापसी के बाद उन्हें वर्ष 1966 में आश्रम के संचालन की मुख्य जिम्मेदारी सौंपी गई। अगले 3-4 वर्षों तक उन्होंने अल्मोड़ा और आसपास के तीन जिलों में शराब की लत के खिलाफ आंदोलन में महिलाओं को संगठित किया। आंदोलन अत्यधिक सफल रहा और परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में शराब की दुकानों को बंद कर दिया गया। उन्होंने कई विषयों पर व्याख्यान देने और सम्मेलनों में भाग लेने के लिएसंयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको, नेपाल, पाकिस्तान, इंग्लैंड, पोलैंड, फ्रांस, चीन और कनाडा का दौरा किया। सुश्री भट्ट ने 1975 मेंचिपको आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने आश्रम की गतिविधियों को वृक्षारोपण कार्यक्रम तक बढ़ाया। उन्होंने पर्यावरण की रक्षा और गांव के साझा चरागाहों और जंगलों को विनाश से बचाने के उद्देश्य से सोपस्टोन खदानों में विस्फोट और खुदाई के खिलाफ अभियान चलाया। आंदोलन ने खीराकोट के गांवों को 300 एकड़ से अधिक भूमि उपलब्ध कराई। सरयू जलग्रहण क्षेत्र में कई खदानें बंद कर दी गईं और 1.60 लाख से अधिक पेड़ लगाए गए। उन्होंने अपने जीवन के दौरान विभिन्न आंदोलनों, अभियानों के लिए पहाड़ में महिलाओं और लड़कियों के साथ 79 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की। लक्ष्मी आश्रम ने पेड़ों की कटाई के मुद्दे पर ग्रामीणों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए शिविर और सम्मेलन आयोजित किए। उन्होंने उत्तराखंड में स्थानीय महिलाओं और लड़कियों के साथ पनबिजली स्टेशन के खिलाफ वर्ष 2008 में ‘नदी बचाओ आंदोलन’ शुरू किया। सुश्री भट्ट ने कई लेख और कुछ किताबें लिखी हैं, जो डेनिश, स्वीडिश और जर्मन भाषाओं में भी प्रकाशित हुई हैं। वह हिमालय सेवा संघ, नई दिल्ली की अध्यक्ष होने के नाते कई गांधीवादी संस्थाओं से जुड़ी रही हैं। वह गांधी स्मारक निधि, नई दिल्ली की सदस्य हैं। वह अखिल भारतीय कस्तूरबा ट्रस्ट, दिल्ली की सचिव बनीं। वह सर्व सेवा संघ, सेवाग्राम की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। वह वर्ष 2006 में दिल्ली में गांधी शांति प्रतिष्ठान की पहली महिला अध्यक्ष और वर्ष 2024 तक लक्ष्मी आश्रम कौसानी की अध्यक्ष थीं। वह सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट, नई दिल्ली तथा सेंट्रल हिमालयन एनवायरनमेंट एसोसिएशन, नैनीताल और पर्वतीय पर्यावरण संरक्षण समिति, पिथौरागढ़ जिले की सदस्य भी हैं। सुश्री भट्ट को कई पुरस्कारों, जैसे वर्ष 1991 में जमनालाल बजाज पुरस्कार, गोदावरी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार (भारत सरकार) (पर्यावरण), मुनि संतबल पुरस्कार और स्वामी राम मानवतावादी पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया गया है।
पदमश्री से सम्मानित ह्यूग गैंट्ज़र उत्तराखंड के प्रसिद्ध यात्रा वृतांत लेखक हैं। वह भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी हैं और कमांडर के पद से सेवानिवृत्त हुए। भारतीय नौसेना से सेवानिवृत्त होने के उपरांत, इन्होंने और इनकी पत्नी श्रीमती कोलीन ने भारतीय मोज़ेक के आकर्षणों की खोज करने का निर्णय लिया। उनका मानना था कि यह आवश्यक है कि अधिक से अधिक भारतीयों हमारी बहु-जातीय, बहुभाषी, उप-महाद्वीपीय राष्ट्र के अलग-अलग आकर्षणों के बारे में जाने, उनका पता लगाएं क्योंकि इन्हें भरोसा था कि भारत में आकर्षक स्थलों की संख्या भारत से काफी बड़े देश सहित अन्य देशों से कहीं अधिक हैं। इनकी खोजों से ये भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रेस के लिए बड़ी संख्या में लेख लिखने के लिए प्रेरित हुए और इन्हें यात्रा वृतांत लेखन की विशिष्ट शैली की शुरूआत का श्रेय जाता है। 9 जनवरी, 1931 को पटना में जन्में श्री गैंट्ज़र ने पटना में कॉन्वेंट, हैम्पटन कोर्ट विद्यालय, सेंट जॉर्ज महाविद्यालय, मसूरी, सेंट जोसेफ महाविद्यालय, नैनीताल, सेंट जेवियर्स महाविद्यालय, कलकत्ता और बम्बई में के. सी. विधि महाविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की। वह वर्ष 1953 में अधिकारी के रूप में भारतीय नौसेना में शामिल हुए और वर्ष 1973 में दक्षिणी नौसेना कमान के पहले न्यायाधीश अधिवक्ता (जज एडवोकेट) के रूप में सेवानिवृत्त हुए। इनका विवाह कोलीन एडी के संग हुआ और साथ में इन्होंने बाय-लाइन “ह्यू एंड कोलीन गैंटजर” की शुरूआत की, भारत में यात्रा वृतांत लेखन का श्रेय इन्हें ही जाता है।
ह्यूग गैंट्ज़र और कोलीन गैंट्ज़र ने 3,000 से अधिक लेख, कॉलम और पत्रिका फीचर्स लिखे हैं और 30 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। गैंट्ज़र्स ने दूरदर्शन द्वारा पूरे भारत में प्रसारित होने वाले पहले यात्रा वृत्तचित्रों (डॉक्यूमेंटरीज): लूकिंग बियोंड विद ह्यूग एंड कोलीन गैंट्ज़र और टेक अ ब्रेक विद ह्यूग और कोलीन गैंट्ज़र, का भी निर्माण किया। क्योंकि गैंट्ज़र्स का लेखन संसार काफी व्यापक है, इसमें साइंस फिक्शन, थ्रिलर और ऐतिहासिक लेखन शामिल हैं, पर इनके लेखन के केन्द्र में यात्रा वृतांत था। गैंट्ज़र्स का मानना है कि भारतीयों की वंशावली विश्व की किसी भी आबादी से कहीं अधिक विशाल है। इसी से हमारे अलग-अलग अविश्वसनीय विविधतापूर्ण रीति-रिवाजों, परंपराओं, हस्तशिल्प और त्योहारों का जन्म हुआ है। और यही वह अविश्वसनीय विविधता है जिससे वे आकर्षित हुए और वह इसे सभी भारतीयों और शेष दुनिया के सामने लाने के लिए संकल्पित थे। गैंट्ज़र्स का भारतीय यात्रा पत्रकारिता पर प्रभाव अतुलनीय है। नैतिक कहानी कहने की उनकी प्रतिबद्धता, गहन शोध और उनके अपने प्रत्यक्ष अनुभव ही हैं, जिन्होंने भारत में यात्रा लेखन के उच्च मानक स्थापित किए। भारत के छिपे हुए रत्नों की खोज के माध्यम से, उन्होंने न केवल पाठकों के मन में देश के प्रति प्रेम को और गहरा किया, बल्कि कई लेखकों को उनके मार्ग पर चलने के लिए भी प्रेरित किया।
ह्यूग गैंट्ज़र ने स्वीकार किया है कि अपनी दिवंगत पत्नी, कोलीन की प्रेरणा से वह यात्रा वृतांत लेखक बन गए, उनकी पत्नी बहुत ही जिज्ञासु, बहुत ही साहसी थीं और संवेदना ऐसी थी कि एकदम अनजान व्यक्ति भी उनके सामने अपने मन की सारी बातें कह जाता था। ये गुण उनके लेखन कला में भी सामने आए। इन्हीं गुणों के कारण गैंट्जर को अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इनमें अन्य पुरस्कारों के अलावा ट्रैवल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया से डी.सी. मेहता पुरस्कार, भारत सरकार से वर्ष 2012 में राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार, पैसिफिक एरिया ट्रैवल एसोसिएशन से गोल्ड अवार्ड, जिसे उन्होंने दो बार जीता, द प्राइड ऑफ द कम्युनिटी अवार्ड ऑफ ऑल इंडिया एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन, द इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स से सर्वश्रेष्ठ यात्रा लेखक पुरस्कार, और भारत सरकार से राष्ट्रीय पर्यटन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड शामिल हैं।
पदमश्री से सम्मानित कोलीन गैंट्ज़रप्रसिद्ध यात्रा लेखिका थीं। उन्होंने और उनके पति श्री ह्यूग गैंट्ज़र ने भारतीय मोज़ेक के आकर्षणों की खोज करने का फैसला किया। उनका मानना था कि अधिक से अधिक भारतीयों को हमारे बहु-जातीय बहुभाषी उप-महाद्वीपीय राष्ट्र के कई आकर्षणों की खोज करने की आवश्यकता है क्योंकि उन्हें विश्वास था कि भारत के आकर्षण अन्य देशों से कहीं अधिक हैं, जिनमें बहुत बड़े देश भी शामिल हैं। उनकी खोजों ने उन्हें भारतीय और अंतरराष्ट्रीय प्रेस के लिए बड़ी संख्या में लेख लिखने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें यात्रा लेखन की विशिष्ट शैली की शुरूआत करने का श्रेय दिया जाता है।
25 जुलाई, 1934 को गोधरा, तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी में जन्मी कोलीन ने बॉम्बे के क्राइस्ट चर्च स्कूल से अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने पहले लुमस के लिए काम किया, जो उस समय बर्मा शेल के लिए बॉम्बे में तेल भंडारण सुविधाओं का निर्माण कर रहे थे। बाद में वह मेटल बॉक्स और फिर कोका- कोला में चली गईं। उन्होंने ह्यूग गैंट्ज़र से शादी की और साथ मिलकरउन्होंने “ह्यूग और कोलीन गैंट्ज़र” नाम से पत्रिका शुरू की, जिसे भारत में यात्रा लेखन में अग्रणी माना जाता है। श्री ह्यूग और श्रीमती कोलीन गैंट्ज़र ने 3,000 से अधिक लेख, स्तंभ और पत्रिका फीचर लिखे हैं और 30 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। गैंट्ज़र ने दूरदर्शन द्वारा पूरे भारत में प्रसारित होने वाली पहली यात्रा वृतांत: लुकिंग बियॉन्ड विद ह्यूग एंड कोलीन गैंट्ज़र और टेक अ ब्रेक विद ह्यूग एंड कोलीन गैंट्ज़रभी बनाया। जबकि गैंट्ज़र के लेखन में विज्ञान कथा, थ्रिलर और ऐतिहासिक सहित विस्तृत शैली शामिल थी, पर उनका मुख्य ध्यान यात्रा पर था। गैंट्ज़र का मानना है कि भारतीयों के पास दुनिया की सभी आबादी की तुलना में सबसे विविध जातीय मूल हैं। इसने हमारे रीति-रिवाजों, परंपराओं, हस्तशिल्प और त्योहारों की अविश्वसनीय विविधता को जन्म दिया है। और यह आश्चर्यजनक विविधता ही थी जिसने उन्हें आकर्षित किया और वह इसे साथी भारतीयों और बाकी दुनिया के सामने लाने के लिए दृढ़ थे। भारतीय यात्रा पत्रकारिता पर गैंट्ज़र का प्रभाव अथाह है। गहन शोध और प्रत्यक्ष अनुभवों के साथ नैतिक कहानी कहने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने, भारत में यात्रा लेखन के लिए उच्च मानक स्थापित किया। भारत के छिपे हुए रत्नों की खोज के माध्यम से, उन्होंने न केवल पाठकों के मन में देश के प्रति प्रेम को और गहरा किया, बल्कि कई लेखकों को उनके मार्ग पर चलने के लिए भी प्रेरित किया।
ह्यूग गैंट्ज़र मानते हैं कि वह अपनी दिवंगत पत्नी कोलीन की प्रेरणा से यात्रा लेखक बने, जो अत्यंत जिज्ञासु, बहुत साहसी और सहानुभूतिपूर्ण थीं, जिससे एकदमअजनबी लोग भी उनके करीब आ जाते थे। ये गुण उनके लेखन में सामने आए। इन्हीं गुणों के कारण गैंट्ज़र को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इनमें अन्य पुरस्कारों के अलावा, ट्रैवल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया से डीसी मेहता पुरस्कार, भारत सरकार से वर्ष 2012 में राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार, पैसिफिक एरिया ट्रैवल एसोसिएशन से गोल्ड अवार्ड, जिसे उन्होंने दो बार जीता, ऑल-इंडिया एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन से प्राइड ऑफ़ द कम्युनिटी अवार्ड, इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ टूर ऑपरेटर्स से सर्वश्रेष्ठ यात्रा लेखक पुरस्कार और भारत सरकार से राष्ट्रीय पर्यटन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार शामिल हैं। 6 नवम्बर, 2004 को श्रीमती कोलीन गैंट्ज़र का निधन हो गया ।