मुख्यमंत्री छांच छोल गए रिखणीखाल ,नौणी ले गये देहरादून

मुख्यमंत्री छाँच छोल गए रिखणीखाल..…नौणी लेगये देहरादून

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जनता के विश्वास पर राजनीति का बोझ, सैनिकों के सम्मान पर पार्टी की मुहर

रिखणीखाल में आज लोगों को लगा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वयं क्षेत्र की दशा-दिशा पर कुछ ठोस करेंगे। सैनिकों को लगा कि मुख्यमंत्री उनके त्याग, अनुशासन और बलिदान के प्रति कुछ सम्मानजनक कदम उठाएंगे। परंतु अफसोस! यहाँ तो “मुख्यमंत्री का कार्यक्रम” कम और “भाजपा का राजनीतिक मंच” अधिक था।सरकारी दौरे के नाम पर पार्टी की सभा सजाई गई और उस सभा में वही दृश्य दोहराया गया जो जनता अब भलीभांति पहचानने लगी है ठेकेदारों का सम्मान, जनता की उपेक्षा और सैनिकों का अपमान।

सैनिकों का अपमान जनता की चुप्पी नहीं, आक्रोश है

रिखणीखाल जैसे वीरभूमि क्षेत्र में जब मुख्यमंत्री आए, तो उम्मीद थी कि फौजियों को विशेष सम्मान मिलेगा, उनकी समस्याओं पर चर्चा होगी। लेकिन न उन्हें मंच पर बुलाया गया, न बैठने की व्यवस्था दी गई। यह केवल अपमान नहीं था, यह उस संस्कृति पर चोट थी जो इस क्षेत्र की आत्मा में बसती है। लोगों को लगा कि मुख्यमंत्री आ रहे हैं मगर वहाँ तो केवल बीजेपी के नेता आए थे, जो केवल बीजेपी के लोगों के लिए कार्यक्रम रच चुके थे।

घोषणाएँ जो पहले ही हो चुकी थीं, बस नया पैकिंग था

मुख्यमंत्री की घोषणाएँ सुनकर ऐसा लगा जैसे पुराने अखबारों में नई सुर्खियाँ चिपका दी गई हों। रजबो मार्ग की घोषणा जो तीन वर्ष पहले बन चुका है। सुलमोड़ी मार्ग जो दस वर्ष पूर्व तैयार हो चुका है। आखिर जनता को बेवकूफ समझा गया या यह “घोषणा राजनीति” का एक नया अध्याय है?
एकमात्र योजना जो थोड़ी ठोस दिखी पम्पिंग योजना उसी पर मुख्यमंत्री ने अपनी पीठ थपथपाई। बाकी सब योजनाएँ विधायक निधि से भी पूरी की जा सकती थीं। कोई भी घोषणा ऐसी नहीं थी जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, रोजगार, या जंगली जानवरों की समस्या जैसी वास्तविक पीड़ाएँ हल होतीं। न केंद्रीय विद्यालय, न दुर्गा देवी–मैदावन मार्ग, न पूर्ण तहसील सब मुद्दे हवा में उड़ गए।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों की अनदेखी लोकतंत्र नहीं, दलतंत्र का प्रदर्शन

इस पूरे कार्यक्रम में सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को मुख्यमंत्री से मिलने क्यों नहीं दिया गया?
क्या मुख्यमंत्री जनता से मिलने आए थे या केवल बीजेपी के कार्यकर्ताओं से?
न तो जिला पंचायत सदस्य बुलाए गए, न सामाजिक संगठन। लेकिन बीजेपी के न्यायपंचायत प्रभारी, सरकारी ठेकेदार, विधायक प्रतिनिधि, जिला अध्यक्ष, ब्लॉक प्रमुख सब मंच के आस-पास थे। स्पष्ट था यह कार्यक्रम “प्रदेश के मुख्यमंत्री” का नहीं, बल्कि “2027 के लक्ष्य” का मंचन था।

विधायक की राजनीतिक घबराहट और सैनिकों के कांधे पर रखी बंदूक

विधायक दिलीप रावत के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। जनता में बढ़ती नाराज़गी, सैनिकों की उपेक्षा और क्षेत्र में अधूरी योजनाओं ने उनका जनाधार पहले ही कमजोर कर दिया है। अब 2027 की तैयारी के लिए वे सैनिकों के कांधे पर बंदूक रखकर निशाना साधने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जनता अब समझ चुकी है यह राजनीति जनता की भलाई के लिए नहीं, कुर्सी बचाने के लिए है।

मुख्यमंत्री का दौरा या ठेकेदारों का उत्सव?

रिखणीखाल का यह दौरा जनता के लिए आशा नहीं, निराशा लेकर गया। यह स्पष्ट दिखा कि यहाँ विकास नहीं, दलगत हित प्राथमिकता में थे। योजनाओं में दम नहीं, केवल “ठेकेदारों का लाभ” दिखा। जनता को झुनझुना थमाकर भ्रम फैलाने की कोशिश की गई। मुख्यमंत्री जी शायद भूल गए कि जनता अब छाँच और नौणी में फर्क समझती है नौणी खावो खुद छांच बाटो जनता में. रिखणीखाल की जनता ने आज देख लिया कि यह दौरा विकास का नहीं, बल्कि विधायक की कुर्सी की हिफाज़त का कार्यक्रम था।

देवेश आदमी

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