टिहरी की सीता देवी केस बना चुनावी मामलों में मिसाल

टिहरी की सीता देवी केस बना चुनावी मामलों में मिसाल

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भविष्य के लिए मार्गदर्शक निर्णय-आर्य

 

देहरादून। उत्तराखण्ड से जुड़े पंचायत चुनाव के मामले में चुनावी प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों के नामांकन रद्द करने सम्बन्धी आदेश को पहले उच्च न्यायालय नैनीताल और फिर सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार को आये आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग में हलचल मच गई।

टिहरी के जिला पंचायत वार्ड भुत्सी जौनपुर से चुनाव लड़ रही सीता देवी मनवाल का नामांकन खारिज कर दिया गया था। और सरिता देवी को निर्विरोध घोषित कर दिया गया था।

सीता मनवाल ने इस फैसले को नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट का फैसला सीता देवी के पक्ष में आया था। बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने भी मंगलवार को नामांकन खारिज करने सम्बन्धी रिटर्निंग अफसर के फैसले को गलत बता कर सीता देवी को राहत दी।

टिहरी के जिला पंचायत वार्ड भुत्सी जौनपुर से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने सीता देवी का नामांकन वैध ठहराया था।

इस मामले में निर्विरोध निर्वाचित घोषित की गई सरिता देवी ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उत्तराखंड के पंचायत चुनाव का यह पहला मामला है, जो सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा।

 

सीता देवी ने कोऑपरेटिव संस्था से लोन लिया था। इस ऋण के अनापत्ति प्रमाणपत्र पर टिहरी के रिटर्निंग अधिकारी ने आपत्ति जताते हुए नामांकन पत्र खारिज कर दिया। जबकि सीता देवी मनवाल सहकारी संस्था के लेखाधिकारी व फिर बाद में सचिव की ओर से जारी अनापत्ति प्रमाणपत्र दाखिल कर चुकी थी।
नामांकन पत्र खारिज होने के बाद सीता देवी ने हाईकोर्ट नैनीताल में याचिका पेश की। हाईकोर्ट ने नामांकन खारिज करने कर फैसले को गलत ठहराया। हाईकोर्ट के फैसले के बाद निर्विरोध निर्वाचित सरिता देवी ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया। और सीता मनवाल के नामांकन को खारिज करने के फैसले को।गलत ठहराया।
सीता मनवाल के इस मामले की पैरवी वकील अभिजय नेगी की टीम ने की।
कांग्रेस नेता आर्य ने कहा कि इस मसले पर पहले नैनीताल उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के निर्णय से न्याय की जीत हुई।

नेता विपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि चुनावी याचिकाओं के इतिहास में सीता देवी केस का यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा और भविष्य की चुनावी याचिकाओं में देश के न्यायालयों का मार्गदर्शन करेगा।

उन्होंने कहा कि आमतौर पर 1952 के पुन्नू स्वामी फैसले का हवाला देकर अदालतें चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करतीं। लेकिन जब सरकार की शह पर रिटर्निंग अधिकारी अपने ही दिशा-निर्देशों की अवहेलना कर किसी प्रत्याशी को लाभ देने के लिए मनमाने निर्णय लेते हैं, तब न्यायालय का हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है। उत्तराखंड के हाल के पंचायत चुनावों में ऐसे दर्जनों उदाहरण सामने आए।

नेता प्रतिपक्ष ने बताया कि सीता देवी मामले में न्यायालयों ने 2000 के निर्वाचन आयोग बनाम अशोक कुमार फैसले का पालन करते हुए साफ किया कि यदि आयोग की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण, मनमानी और अवैध हो, तो चुनाव याचिका दायर होने से पहले भी रिट याचिका के जरिए अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।

उन्होंने कहा कि अशोक कुमार फैसले के बाद भी अब तक अदालतें चुनावी मामलों में कम ही हस्तक्षेप करती हैं और चुनाव याचिकाओं पर फैसले आने में काफी देर लगती है, जिसका फायदा उठाकर गलत तरीके अपनाने वाले बेलगाम हो जाते हैं।

यशपाल आर्य ने कहा कि पुन्नू स्वामी फैसले का गलत फायदा उठाने वालों के खिलाफ अदालतों में चुनौती दी जानी चाहिए ताकि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रह सके।

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