बड़ी खबर:गलत जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करना अधिकारियों पर भारी , लटक सकती गिरफ्तारी की तलवार

बड़ी खबर:गलत जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करना अधिकारियों पर भारी , लटक सकती गिरफ्तारी की तलवार

electronics

देहरादून। आज देहरादून के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी माननीय सैयद गुफ़रान ने उत्तराखंड के 4 अधिकारियो जिनमे वित्त नियंत्रक विवेक स्वरूप श्रीवास्तव, देहरादून के अपर जिलाधिकारी के के मिश्रा, शासन में अपर सचिव अरुणेंद्र सिंह चौहान एवं निदेशक चिकिसा शिक्षा डा आशुतोष सयाना के ख़िलाफ़ जाँच के आदेश दे दिए है ।

हाल ही में विवेक स्वरूप श्रीवास्तव पर आय से अधिक संपत्ति के आरोप में 12 जमीनों की रजिस्ट्रिया और 2 पत्नियाँ और 3 बच्चे होने की ख़बर सोशल मीडिया में आई थी और अरुणेद्र सिंह चौहान पर पूर्व में ही सीबीआई से शासन को आय से अधिक संपति (लगभग 100 करोड़ से अधिक संपति) एवं सरकारी दस्तावेजों में हेरा फेरी करने के मामले में शासन में जांच लंबित है तथा IFMS तथा ITDA में गंभीर आरोप के मामले मीडिया में सुर्ख़ी बने थे ।

शिकायतकर्ता ने उक्त अधिकारियों के खिलाफ 22 गंभीर धाराओ में मुक़दमा दर्ज करने का केस दायर किया था ।

जानकारी के अनुसार इन अधिकारियों ने सुभारती एमटीवीटी ट्रस्ट को हेराफेरी,जालसाज़ी और ग़लत दस्तावेजों के आधार पर अनुमति देने में ग़लत जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत की थी और इन अधिकारियों की रिपोर्ट को कैग ने अपनी जाँच में ग़लत पाया था ।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि उक्त ट्रस्ट को एनएमसी के नियमों के विरुद्ध एंड मानको को दरकिनार कर गंभीर अनियमितताए कर बार बार दस्तावेज बदल कर रिपोर्ट दी गई

आरोप है कि उक्त ट्रस्ट को एमबीबीएस अनुमति देने में अनैतिक कृत्य कर अपनी नियुक्ति और पद का दुरुपयोग किया गया ।

बता दे कि एनएमसी, भारत सरकार विजिलेंस सहित अनेक जांच उक्त से संबंधित मामले में चल रही है और जल्दी ही गौतम बुद्ध चिकित्सा महाविद्यालय पर ताला लग सकता है क्यूंकि पूर्व में भी यहाँ के छात्रों को फर्जी एमबीबीएस डिग्री देने के आरोप के चलते राज्य सरकार एवं सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में शिफ्ट किया गया था और 97 करोड़ की पैनल्टी राज्य सरकार ने सुभारती पर लगाई थी और राज्य में मेडिकल कॉलेज चलाने के लिए बैन लगाया था परंतु उक्त ट्रस्ट ने सभी को धोखे में रख नाम बदल कर फर्जीवाड़ा एवं कुटरचना कर फर्जी शपथ पत्र एवं दस्तावेज बनाकर एनएमसी से अनुमति हासिल कर ली थी और हाल ही में जिन जमीनों को दिखा कर गौतम बुद्ध चिकित्सा महाविद्यालय दिखाया उनमे से कई बीघा राज्य सरकार में निहित हो चुकी है और बाक़ी की लैंड फ्रॉड कमिटी,गढ़वाल कमिश्नर के यहाँ 2 साल से पत्राचार आपस में ही अधिकारियों में चल रहा है ।

उक्त सभी कृत्य वादी ने DGP उत्तराखंड , गृह सचिव सहित आला अफसरों की जानकारी में प्रस्तुत किए थे जिस पर CAG रिपोर्ट सहित जांच आख्या क्षेत्राधिकारी द्वारा दी गई थी जिसे वादी ने कोर्ट में प्रस्तुत किया था और भारतीय न्याय संहिता की 22 गंभीर धाराओ में मुक़दमा दर्ज करने की याचिका दायर की है ।

क्या कहती है संवैधानिक व्यवस्था? वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह एवं प्रकाश शर्मा के अनुसार DOPT के नियम अनुसार कोई अदालत सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जब जांच का आदेश देती है, तो संभावित नतीजे महत्वपूर्ण होते हैं और व्यक्तियों, सरकार और जनता को प्रभावित कर सकते हैं।

मुख्य नतीजों में शामिल हैं:

अधिकारियों के खिलाफ संभावित आपराधिक या अनुशासनात्मक कार्रवाई, निलंबन तथा जनता के भरोसे पर संभावित नकारात्मक प्रभाव और सरकार के कामकाज में संभावित व्यवधान।

इसलिए क्या डबल इंजन की पारदर्शी सरकार की पारदर्शिता के चलते नियमानुसार क्या उक्त अधिकारीयो को तत्काल सस्पेंड कर देना चाहिये ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *