बुग्याल संरक्षण दिवस की घोषणा एक महत्वपूर्ण कदम
विगत 2 सितंबर को वैसे तो बुग्याल संरक्षण के लिए परंपरागत रूप से कुछ कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रतिवर्ष 2 सितंबर को बुग्याल संरक्षण दिवस मनाने की घोषणा की है। सीएम धामी की इस घोषणा पर यदि गंभीरता से अमल हुआ तो निश्चित रूप से बुग्यालों के संरक्षण की दिशा में बड़ी और गंभीर पहल होगी।
सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर बुग्याल क्या हैं और इन बुग्यालों का महत्व क्या है। बुग्यालों को दो भाग में बांटा जा सकता है एक विशुद्ध रूप से वह अल्पाइन क्षेत्र (मखमली घास के वह मैदान जो ट्री लाइन से ऊपर और स्नो लाइन से नीचे हैं) को ही हम सामान्य तौर पर बुग्याल मानते हैं।
मैं चूंकि एक ऐसे ही हिमालय क्षेत्र का रहने वाला हूं जहां चारों ओर आली-बेदिनी, बगजी और नवाली जैसे विश्व विख्यात बुग्याल फैले हैं, इसलिए जितना मैं समझता हूं उसके अनुसार अल्पाइन क्षेत्र के नीचे के इलाके भी महत्वपूर्ण बुग्याली क्षेत्र हैं। यह वह क्षेत्र हैं, जो घने वनों से आच्छादित हैं और विभिन्न प्रकार की वनस्पति और यहां का वातावरण इन्हें बुग्याली क्षेत्र बनाता है। यह वन्यजीवों के प्राकृतिक वास भी हैं।
बुग्याल संरक्षण के लिए 2 सितंबर का दिन वाकई बहुत महत्वपूर्ण दिन है। यह वह समय होता है जब बुग्यालों में नाना प्रकार के फूल, जड़ी बूटियों के पौधे और विलुप्त हो रहे बहुत सारे पादप खिलखिला रहे होते हैं। पारिस्थितिकी की धरोहर और जैव विविधता के इस अपार भंडार पर सितंबर के बाद ही सबसे बड़ा खतरा भी मंडराता है। बारिश का जोर कम होने और आसमान साफ रहने की वजह से तमाम ट्रैकिंग दल इन बुग्यालों की ओर कूच कर जाते हैं। पूरे ग्रीष्म काल और वर्षा काल में पालतू पशुओं के झुंड इन बुग्यालों को अपने खुरों से रौंदते रहते हैं। जिससे बड़े पैमाने पर बुग्यालों में पैदा होने वाली वनस्पति भी नष्ट हो जाती है।
बुग्याल न केवल उत्तराखंड की धरोहर हैं, बल्कि ये जल भंडारों के स्रोत हिमालयी ग्लेशियरों के पहरेदार भी हैं। अल्पाइन और अल्पाइन से लगे इन वन क्षेत्रों में वनस्पति के साथ ही वन्य जीव-जंतुओं और पंछियों का रहस्यमय संसार वास करता है, जिनमें स्नो लेपर्ड, कस्तूरी मृग, हिमालयी भालू, भरल, थार जैसे दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव और मोनाल और अन्य पंछियां शामिल हैं।
जहां तक मुझे याद है पिछले काफी समय से पद्मश्री कल्याण सिंह रावत मैती जी बुग्याल संरक्षण को लेकर लगातार प्रयासरत थे। इस कड़ी में लोहाजंग के कैप्टन स्व. दयाल सिंह पटवाल जी को भी याद करना समीचीन होगा। कैप्टन पटवाल ने भी आली-बैदनी -बगची बुग्यालों के संरक्षण को लेकर के लंबे समय तक काम किया। हालांकि इस मामले में उनकी एक रिट पर हाई कोर्ट ने अल्पाइन क्षेत्र में रात्रि विश्राम पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसकी वजह से पर्यटन भी बुरी तरह प्रभावित हुआ।
बुग्यालों का हमारे लोकजीवन में भी बहुत महत्व है। हिमालयी महाकुंभ के रूप में पहचान बना चुकी नंदा राजजात यात्रा ऊंचे बुग्यालों से होते हुए त्रिशूल हिमालय की तलहटी तक प्रत्येक 12 वर्ष में पहुंचती है। जिसमें उत्तराखंड के लोग अपनी आराध्य देवी नंदा को उनके ससुराल भगवान भोलेनाथ के घर कैलाश तक पहुंचाते हैं।
इसलिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की बुग्याल संरक्षण दिवस की घोषणा को मैं बहुत महत्वपूर्ण मानता हूं। बुग्यालों के संरक्षण को लेकर स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर ऐसी योजनाएं बनानी पड़ेगी जिससे बुग्यालों का संरक्षण तो हो ही, स्थानीय लोगों के हितों पर भी इसका कोई दुष्प्रभाव ना पड़े। राज्य के हिमालय क्षेत्र में सैंकड़ों की संख्या में बुग्याल बिखरे पड़े हैं, इनके लिए अगर ठोस कार्ययोजना बन पायी तो निश्चित रूप से ये बुग्याल जहां उत्तराखंड की बड़ी पहचान बनेंगे वहीं इस राज्य की आर्थिकी के बहुत बड़े स्रोत भी होंगे।
2 सितंबर को उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) में हिमालय संरक्षण सप्ताह की शुरुआत बड़े उत्साह के साथ की गई। कार्यक्रम का आरंभ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के वीडियो संदेश से हुई। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि हिमालय हमारी पहचान है, हमारी संस्कृति है, और हमारी जीवनरेखा है। उन्होने कहा कि हमारी भावी पीढ़ियों के लिए हिमालय की सुंदरता और समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है। इसी मौके पर मुख्यमन्त्री ने हर वर्ष 02 सितंबर को बुग्याल संरक्षण दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा भी की। हालांकि बुग्यालों की चिंता राज्य गठन के समय ही शुरू हो जानी चाहिए थी। बुग्यालों की चिंता करने के लिए यूकॉस्ट के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत, पद्मभूषण डॉ अनिल जोशी,
पदमश्री कल्याण सिंह रावत मैती ने कहा कि बुग्याल देवताओं का आगन हैं और इसका संरक्षण एक पवित्र कार्य है, जो हमें अपनी संस्कृति, परंपराओं और पर्यावरण के साथ जोड़ता है। हमें इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा ताकि हम अपनी मातृ प्रकृति की अनमोल सुंदरता को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करें। कार्यक्रम में वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक डॉ. धनंजय मोहन ने बुग्यालों को उत्तराखण्ड का एक अद्वितीय क्षेत्र बताया। उन्होंने कहा कि बुग्याल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में भी एक विशेष भूमिका निभाते है। इस मौके पर वन प्रमुख द्वारा एक समिति बनाने की भी घोषणा की गई, जो बुग्याल संरक्षण के हर पहलू पर विशेष योजना तैयार करेगी।
कार्यक्रम में मैती संस्था द्वारा यूसैक के वैज्ञानिक डॉ. गजेंद्र सिंह को विगत वर्षो से हिमालयी क्षेत्र में किए गए विशेष वैज्ञानिक कार्यों हेतु ‘गिरी गंगा गौरव सम्मान’ से पुरस्कृत किया गया। इस दौरान यूकॉस्ट और मैती संस्था द्वारा आयोजित अल्पाइन मीडोज फोटोग्राफी प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार भी वितरित किए गए। प्रथम पुरस्कार चिनार शर्मा, द्वितीय पुरस्कार सृष्टि जोशी व तृतीय पुरस्कार संजय कुमार द्विवेदी व महिपाल सिंह गड़िया को दिया गया तथा सांत्वना पुरस्कार पाने वालो में महेश पैनुली तथा डॉ. गजेंद्र सिंह शामिल रहे।
अर्जुन बिष्ट/वरिष्ठ पत्रकार की फेसबुक वॉल से