कब है धन तेरस, लक्ष्मी पूजन का क्या है सही समय,कब है छोटी बड़ी दीपावली: जानें प्रसिद्ध आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं से

आप सभी विद्वानों को मेरा सादर प्रणाम मै आप सभी आचार्य अध्यक्ष जी व विद्वत सभा उत्तराखंड के संरक्षक मंडल सभी सदस्यों की जो सहमति है लोग कुछ भी बोलें विद्वत सभा में अनेकानेक विद्वान उनका निर्णय सर्वोपरि है कौन कब मना रहा है इस पर विवाद न करके हमारा निर्णय जो है वह शास्त्र सम्मत है
,, पूर्वत्रैव व्याप्तिरिति पक्षे परत्र यामात्रयाधिकव्यापिदर्शे दर्शापेक्षया प्रतिपदवृद्धिसत्वे लक्ष्मीपूजादिकमपि परत्रैवेत्युक्तम् । एतन्मते उभयत्र प्रदोषव्याप्तिपक्षेपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिक व्याप्ति त्वात्परैव युक्तेतिभाति ।।
इस पुरूषार्थ चिन्तामणि के अनुसार
अर्थात यदि अमावास्य केवल पहले दिन ही प्रदोषकाल को व्याप्त हो तथा अगले दिन अमावास्या साढ़े तीन प्रहर से अधिक व्याप्त हो एवं अगले दिन भी प्रतिपदा तिथि वृद्धिगामिनी होकर तीन प्रहर के उपरांत समाप्त हो रही हो तो दूसरे दिन अर्थात अमावास्या के दिन लक्ष्मी पूजन करना चाहिए इस शास्त्र नियमानुसार 21 अक्टूबर मंगल वार को सायं 5 बजकर 55 मिनट तक है जो सूर्यास्त के कुछ मिनटों के बाद है अर्थात साड़े तीन प्रहर से उपर है , तथा प्रतिपदा तिथि 20 घंटा 15 मिनट पर समाप्त होनें से वृद्धिगामिनी है अमावास्या कुल मान 26 घंटा 10 मिनट है तथा प्रतिपदा तिथि का कुल मान 26 घंटा 22 मिनट है अर्थात सायं कालिक संधिकाल काल पर लक्ष्मी आगमन का समय भी शास्त्र मानते हैं निर्णय सिन्धु धर्मसिन्धु पुरूषार्थ चिन्तामणि के अनुसार प्रदोषकाल व्याप्त वाली अमावास्या को ही लक्षमीपूजन करना युक्ति संगत होगा सभी शास्त्र वचनों व उतराखंड विद्वत सभा के और जिस पंचांग को हम हमेशा साथ रखते हैं वाणी भूषण पंचाङ्ग और हमारा सरस्ती पंचांङ्ग के अनुसार जब 21 अक्टूबर 2025 का निर्णय शास्त्र सम्मत है । ,,या तिथिं समनुप्राप्य उदयं याति भास्करः ।
सा तिथि सकलाज्ञेया स्नान दान व्रतादिषु ।।,,
21 अक्टूबर 2025 को प्रदोषकाल में साकल्यापादित अमावास तो विद्यमान रहेगी ही । इसका मतलब गणितागत तिथि किसी दिन कर्मकाल के एक ही पल को व्याप्त क्यों न करे , उसका पूर्ण कर्मकाल धर्मशास्त्रानुसार साकल्यापादित तिथि व्याप्त होनें के कारण व्रत पूजानुष्ठान के योग्य होता है अर्थात 21 अक्टूबर 2025 को मनाना शास्त्र सम्मत है सूर्यास्त बाद प्रदोषकाल काल 2 घंटे 24 मिनट के अवधि के भीतर मे किया जायेगा सूर्यास्त से आधा घंटे पहले से सूर्यास्त के बाद 2 घंटा 24 मिनट तक की काल अवधि में निस्संदेह लक्षमीपूजन करना शुभ रहेगा ।
आचार्य शिवप्रसाद ममगांई बदरीकाश्रम ज्योतिष्पीठ व्यास पदालंकृत संरक्षक उत्तराखंड विद्वत सभा ।

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