प्रसिद्ध लोक कवि सतेंद्र सिंह चौहान की कविता संग्रह गों की खुद का अंतरराष्ट्रीय। गढ़वाल महासभा द्वारा किया गया विमोचन

प्रकृति और स्वास्थ्य को समर्पित है घी संक्रांति:- अंतर्राष्ट्रीय गढ़वाल महासभा द्वारा लोकपर्व *घी संक्रांति* के अवसर पर लोककवि सतेंद्र सिंह चौहान ‘सोशल’ के कविताओ के संग्रह *गों की खुद* का लोकार्पण किया। महासभा के देहरादून रोड स्तिथ कार्यालय में महासभा के संस्थापक अध्यक्ष डॉ राजे नेगी, महासचिव उत्तम सिंह असवाल, समाज सेवी अनिल रावत ने संयुक्त रूप से लोक कवि सतेंद्र चौहान की लोक कविता गों की खुद का लोकार्पण किया। महासभा के अध्यक्ष डॉ राजे नेगी ने बताया कि
कविताओ के माध्यम से लेखक ने प्रवासी उत्तराखण्डियों के साथ ही रोजगार के लिए पहाड़ो से मैदान पलायन कर चुके पहाड़वासियों से समय समय पर अपने पैतृक गावँ आकर अपनी लोक संस्कृति लोक त्योहारों को मनाये जाने का आह्वाहन किया है। लोककवि चौहान द्वारा अबतक आधा दर्जन से अधिक उत्तराखण्डी फिल्मो की पटकथा एवं संवाद लिखे है साथ ही दो गढ़वाली धारावाहिक की पटकथा एवं संवाद लिखा जा चुका है जिनका प्रसारण आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर हो चुका है,
इसके अलावा उनकी पांच दर्जन से अधिक कवितायें प्रकाशित हो चुकी है।
महासभा के अध्यक्ष डॉ राजे नेगी ने बताया कि उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत अपने आप मे कई ऐसे पर्वो को समेटे हुवे है।जिनका यहाँ की संस्कृति में बड़ा खास महत्व है इन्ही में से एक लोकपर्व घी त्यार भी है। गढ़वाल मंडल में इसे घी संक्रांति और कुमाऊँ मण्डल में घी त्यार के नाम से जानते है,पहाड़ो में कृषि,पशुधन और पर्यावरण पर आधारित इस लोकपर्व को लोग धूमधाम से मनाते है।नेगी ने कहा कि घी संक्रांति देवभूमि उत्तराखंड में सभी लोकपर्वो की तरह प्रकृति और स्वास्थ्य को समर्पित पर्व है। पूजा पाठ करके इस दिन अच्छी फसलों की कामना की जाती है अच्छे स्वास्थ्य के लिए घी व पारम्परिक पकवान हर घर मे बनाये जाते है उत्तराखंड की मान्यताओं के अनुसार इस दिन घी खाना जरूरी माना जाता है।

electronics

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *